मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

गंदा दंगा

...............आज दंगों की बात फूटी है l
1984 और 2002 के ही दंगों की चर्चा होती है l
मुझे भी स्मरण है, कदाचित आपको भी हो -
इसी काल खंड में सरकारी तंत्र द्वारा प्रायोजित एक दंगा हुआ था, कोई 250-300 ज़िन्दगी की आहुतियां हुई थीं l
नही याद आया,
अभी याद आ जाएगा l
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में निकृष्टतम प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा मंडल आयोग की संस्तुतियों को भारत में लागू करने की घोषणा की गई थी l
पूरे देश में हाहाकार मच गया था l यह आजादी के बाद के भारत को सामाजिक तौर सर्वाधिक हानि पंहुचाने वाला कदम था l
क्या इस घोषणा के पीछे वास्तव में तथाकथित पिछड़ों का हित था या एक नये प्रकार के वोट बैंक का निर्माण.......... यह मुद्दा फिर कभी l
घोषणा होने के पश्चात भारत के युवाओं में नैराश्य भर गया और जिनके लिए यह घोषणा की गई थी, उन्होंने तो कभी मांगा ही नही l
इस घोषणा के साथ भारत में आजीविका चलाने के संसाधन के रूप सबसे ज्यादा इच्छित "सरकारी नौकरी" जुड़ी थी, नतीजतन एक सुदृढ़ समाज आखिरी व्यक्ति तक विभाजित हो गया था l
बात फिलहाल दंगे की l
इस घोषणा से उपजी निराशा व हताशा के कारण सैकड़ों युवा अग्निस्नान कर लिए l
कितनी ही मांओं की गोद सूनी हो गई l
इस देश ने कितने ही होनहार खो दिए l
और शासन/प्रशासन मात्र लाठियां भांजता रहा, कानून-व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर हजारों मासूमों को जघन्य अपराधियों की तरह जेलों में ठूंसा गया था l
युवाओं ने दिल में लगी आग को अपने शरीर पर धारण करना शुरू कर दिया था l
युवाओं के इस विरोध को कोई स्पष्ट नेतृत्व नही मिला और राजनीति जीत गई l
मात्र 250-300 जिन्दगीयों से ही यह दंगा समाप्त नही हुआ, आज तक होनहारों की मानसिक/शैक्षिक/आर्थिक हत्या के रूप में बदस्तूर जारी है l
जब एक एक कर मासूम स्वयं की आहुति दे रहे थे तब
कोई भी नेता,
अभिनेता,
इतिहासकार,
कलाकार,
वैज्ञानिक,
लेखक,
कवि,
साहित्यकार,
ड्रामेबाज,
नौटंकी बाज,
साधू,
सन्यासी,
महन्त,
दार्शनिक,
समाज का ठेकेदार
सामने आकर बच्चों को नही मना किया,
किसी ने इन बच्चों के समर्थन या सरकार के निर्णय के विरोध में अपना पुरस्कार/सम्मान/इनाम/नाम नही वापस करने की घोषणा की l
ऐसा प्रतीत होता था कि
हर गली में एक भगत सिंह हाथ में मशाल लिए खड़ा हो, और
हर राजनैतिक चौराहे पर कोई गांधी अपने हठ पर अड़ा हो l
इस दंगे से तो असहिष्णुता नही फैली थी ना,
तब देश का माहौल बड़ा सुकून दायक हो गया था,
इसीलिए बच्चों के दुख पर मरहम रखने को कोई साहित्यकार, रचनाकार नही आया था l
किसी भी राणा की आंख से आंसू तब नही गिरे थे l
यह एक भीषण विभीषिका का समय था l
यह मुलायम/लालू/मायावती/शरद/नीतीश जैसों को पनपने के लिए सुनहरा अवसर था, जिसका इन सबने पूरी चतुराई से लाभ उठाया और जमकर समाज विभाजन का खेल खेला l
तब के साहित्यकार भी अपनी अपनी गोटियां सेट कर राजनीतिक चारण व भाट बन गये l
असर भी दिखा है,
जनता दल, जिसके मुखिया ने विभाजन की नींव रखी, वो भी खंड खंड होकर लुप्त प्राय हो गया l
जितने भी क्षेत्रीय क्षत्रप हैं, इनका भी झंडा तभी तक है जबतक वे स्वयं इस धरा पर विराजमान हैं, उनके बाद उनकी पार्टी का भी राम नाम सत्य l
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जिस दंगे की हमने बात की, उसने हिन्दू समाज को सर्वाधिक क्षति पंहुचाई l
इस बात को भांप कर भारतीय जनता पार्टी ने विखण्डित हो रहे हिन्दू समाज को एक रखने के लिए भगवान राम को मैदान में उतारा, कि हे ईश्वर अब तेरा ही सहारा है l
किन्तु इन तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी शक्तियों ने इसे सम्प्रदायिकता का नाम दिया, खैर वो इनकी अपनी सोच है- सोचते रहें और शौचते रहें l
भगवान राम भी, जिन्होंने शबरी के जूठे बेर खाकर जातिहीन समाज का संदेश दिया, इस हिन्दू समाज को विखंडन से नही बचा पाए l
कारण - इस समाज की सहिष्णुता l
सहते सहते, बंटते बंटते मोक्ष प्राप्ति के सन्निकट पंहुच गया है हिन्दू व हिन्दू समाज l
मात्र एक ही विकल्प है इसे बचाने का,
जाति आधारित आरक्षण समाप्त करो,
जातिहीन समाज बनाओ l
देश बचाओ l
जय हिंद,
जय भारत l

सोमवार, 28 दिसंबर 2015

विवशता की आड़ में

                                                       .............विवशता की आड़ में.................. 
केजरीवाल जी, (नही 'जी' नही)
सामाजिक रूप से स्थापित करने के लिए मो. अफरोज को दस हजार रूपये व एक सिलाई मशीन देने की घोषणा करके, आपने स्वतंत्रता प्राप्ति पश्चात देशहित के विरुद्ध कृत कृत्यों में सर्वोच्च घृणित कार्य किया है l
....दिल्ली तो छोड़िये, राष्ट्रीय राजधानी परिक्षेत्र में दस हजार व एक सिलाई मशीन से क्या होगा ? वोट बैंक के लिए मुस्लिम समाज को बेवकूफ बना रहे हो ?
....दिसम्बर 2012 को दिल्ली में जारी आंदोलन में भी तुम गये थे ना ? क्यूं ?
.... (क) या तो निर्भया कांड कृत्य के विरोध में,
.... (ख) या फिर अपने राजनीतिक लाभ के लिए l
यदि (क) के लिए गये तो उस कृत्य के खूंखारतम कर्ता के भविष्य के लिए इतनी सहानुभूति क्यों l
ईश्वर ना करे, यह कृत्य तुम्हारी बेटी के साथ हुआ होता तो क्या आज तब भी तुम्हारा यही आचरण होता ?
तुम्हारे मुख्यमंत्री बनने के बाद बाल सुधार गृह से रिहा होने वाला पहला सुधरा अपराधी अफरोज है ?
यदि नही, तो कितने रिहा हुए हैं, और उनमें से कितनों की सामाजिक स्थापना के लिए तुमने क्या क्या किया है l
यही तुम्हारी लीक से हटकर राजनीति का प्रदर्शन है ?
हिम्मत है तो उत्तर दो l
सिद्ध होता है कि तुम (ख) के लिए गये थे, तभी वहां उपस्थित जनमानस ने तुम्हें वहां से खदेड़ दिया था, उचित किया था l
कल के पहले तक बहुत विशाल संख्या में लोग तुम्हें, तुम्हारी गलत कार्य प्रणाली के कारण कोसते, गरियाते थे, निंदा करते थे l
किन्तु हम, राजनीति में नये होते हुए पुराने अनुभवी राजनीतिज्ञयों से निरंतर लड़ते हुए दिल्ली का प्रशासन चलाते रहने के हौसले को सलाम करते थे l
तुम्हारे इस दुष्कृत्य ने तुम्हारे समस्त सुकार्यों पर सदा सर्वदा के लिए पानी फेर दिया l
अफरोज के भविष्य की चिंता ने निर्भया के मां पिता की मन:स्थिति के बारे सोचने से रोक दिया l
और हम पूरे विश्वास से कहते हैं कि तुम्हारे इस 'सुकर्म' से प्रसन्न होकर कोई भी सच्चा मुसलमान, यहां तक कि अफरोज के नाते रिश्तेदार भी तुम्हें वोट नही करेंगें l
सही कहा गया है कि -
जिसका उत्थान जितनी तेजी से होता है, उसका पतन भी उतनी ही तेजी से होता है l
और यह होगा, होकर रहेगा l
क्योंकि तुम्हारे विरोधियों की संख्या में एक मेरा भी नाम शामिल हो गया है और मैं तुम्हें सच्चे हृदय से श्राप देता हूं कि तुम्हारा तत्काल राजनैतिक पतन हो l
सर्वाधिक स्वार्थी राजनीतिज्ञ l

सिलाई मशीन का दर्द

                  ....................सिलाई मशीन का दर्द................

कल दिनभर की भारी भागदौड़ के बाद हम रात्रीकालीन भोजन करके लगभग दस बजे ही गहरी नींद सो गये l
कोई चार घंटे की नींद के पश्चात कुछ अनियमित सी खड़र खड़र की ध्वनि सुनाई पड़ने से नींद टूट गई l
कुछ देर प्रतीक्षा करने के पश्चात भी ध्वनि बंद नही होने से हम उठे, अपनी लाठी उठाई और ध्वनि की दिशा जो कि रसोईघर की ओर से आ रही थी l
हम वहां पंहुचे, अपने राजमहल के उस क्षेत्र को 'ज्योतिर्मय' किया, देखा वहां कोई नही था l
हम वापस लौटने लगे कि कहीं से फिर 'खड़'
की ध्वनि सुनाई पड़ती है, जैसे किसी ने गला बैठा कर या मुंह से हाथ दबा कर 'खड़' की ध्वनि की हो l
अब हमें विश्वास हो गया कि यह मेरा स्वप्न नही था, निश्चित रूप से कोई तो है यहां पर l
........कौन है यहां ?
............................
........हम अंतिम बार कह रहे हैं, जो भी है स्वयं सामने आओ, यदि हमें निकालना पड़ा तो इस सिलाई मशीन से तुम्हारे दोनो होठ सिल दूंगा l
.............................
अच्छा तो हम अब लाठी उठाते हैं, और जैसे ही लाठी उठाई.....
...खड़ अरे खड़ संतोष, यह हम खड़ हैं l
...कौन ? सामने आओ l
...हम, खड़, सिलाई मशीन खड़ हैं l
मेरे हाथ से लाठी छूट गई, दोनों पैर थर थर कांप रहे थे, 20-21 दिसम्बर की रात में पसीने की बूंदे ललाटोत्सव करने लगीं l
...अरे संतोष, हम खड़, सिलाई मशीन हैं, डरो मत l हमारे खड़ उपर हमने तुम्हारे खड़ लिए एक ग्लास पानी खड़ रखा है, पी लो फिर सो जाओ खड़ l
हमने देखा, सिलाई मशीन पर पानी था l
.....ये तो बहुत ठंढा पानी है l
................................... अब पी लो l
पानी कुनकना हो गया l हम पानी पी गये l
(पानी मेरे सामने पलक झपकते ही कुनकना हो गया था, डर गए हम l मशीन की सत्यता परखने हेतु हमने साहस बटोरते हुए -
...मुझे तुम्हारी खड़ खड़ से बहुत कष्ट हो रहा है, इसे पहले बंद करो l
...खड़....... ठीक है, अब खड़ खड़ नही होगा, किन्तु तुम से बात करने के लिए मुझे नॉन खड़क स्थिति में आना होगा l डरना मत तुम l
और देखते ही देखते वह मशीन महिला रूप में आई और सामने की कुर्सी पर बैठ गई l
... हे देवी आप कौन हैं ?
... मैं सिलाई मशीन ही हूं l
... मुझे विश्वास नही हो रहा है, डर भी लग रहा है l
... डरने की कतई आवश्यकता नही है l
... अच्छा ठीक, तो फिर आप रात में अचानक से क्यों खड़खड़ाने लगीं थीं ?
... हम खड़खड़ा नही रहे थे, हम अपनी सामाजिक स्थिति पर बहुत दुखी थे, बस इस समय भावातिरेक में हमारी आंखो से अश्रु निकल पड़े l
... तुम्हारी सामाजिक स्थिति ? तुम्हारे अश्रु ? क्या है, समझ नही आ रहा है l तुम्हारे पास जीवन भी है?
... हां संतोष l लगभग दो सौ साठ वर्षों से हम इस संसार में निरंतर, तुम्हारी सामर्थ्य भर तुम्हारी ही सेवा कर रहे हैं l तुम लोगों ने आज हमारे साथ क्या कर दिया ?
...दो सौ साठ वर्ष ?
... हां, सन 1755 से 19 वीं शताब्दी के अंत तक विकसित होते हुए हम भारत में आए थे, अमेरिका से सिंगर व ब्रिटेन से पफ के रूप में l सन 1935 से हम कोलकाता में ही बनने लगे और हमें उषा नाम से जाना जाने लगा l अब तो तुम्हारी आवश्यकता के अनुसार हमारे लगभग 2000 प्रकार, तुम्हारे लिए कपड़ा/चमड़ा की सिलाई, कढ़ाई, काज जैसे सभी कार्य कर रहें हैं l
इतने वर्षों में आज तक हमें किसी ने भी -
इतना शर्मिन्दा नही किया,
हमारे आत्मसम्मान/प्रतिष्ठा को इतनी ठेस नही पहुंचाई,
हमें हमारी ही आंखों से इतना नही गिराया
जितना दिल्ली सरकार नें हमें मोहम्मद अफरोज के हाथों में सौंपने की घोषणा करके किया है l
एक समय था कि हम सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रतीक हुआ करते थे, आज मुस्लिम बलात्कारीे पुनर्वास योजना के प्रतीक के रूप में स्थापित हैं l
हमारी पैतृक यशगाथा की महत्ता समाप्त हो गई l
हमारा कुल कलंकित हो गया l
तुम मनुष्यों के अपने विवाद में हमारा क्या योगदान है,
हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?
तुम्हें तन ढकने लिए हमने सुसज्जित वस्त्र दिए, और तुमने हमें वस्त्रहीन कर दिया l आज पूरी दुनिया के सामने 'उषा' निर्वस्त्र हो गई l
हे कान्हा,
अपनी द्रौपदी की लाज रखो, मुझे बचाओ,
मेरी अस्मिता को इन कौरवों से बचा लो, प्रभु l
इतना कहते ही वो नारी-यंत्र में परिवर्तित हो गई l
अब चाहे जैसे चलाओ,
बालिग, नाबालिग सब चलाओ,
सभी नाबालिग, हर मशीन चलाओ,
पुनर्वास स्वरूप नई नई मशीन पाओ,
फिर फिर चलाओ l
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'नारी तुम केवल श्रृद्धा हो'
हम तुमसे क्षमा मांगने योग्य भी नही हैं l

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

सगीर मियां की भैंसों का भारत

हमारे घर के बाईं ओर सगीर मियां का मकान है l सगीर मियां के घर में उनकी श्रीमती जी, एक बेटा, दस के लगभग भैंसें व एक गाय रहते हैं l  सगीर जी मुझसे कोई दस पन्द्रह वर्ष बड़े होंगें l सगीर जी के एक बिटिया भी है, नाम है गुड़िया l गुड़िया का निकाह हो चुका है, यहीं कोखराज के पास रहती है l
हम यहां इस मकान में सन 1988 में आए थे l सगीर भी तभी आए थे l हम अट्ठाइस वर्ष से पड़ोसी हैं l 
सगीर जी दूध का व्यवसाय करते हैं l सुबह शाम भैंसों व गाय का दूध दुहते हैं और सबको देते हैं l इतना बढ़िया दूध होता है कि उसकी प्रशंसा के लिए हमारे पास शब्द नही हैं l इसी दूध को पच्चीस वर्षों से हमारे परिवार में प्रयोग किया जाता है और इसी दूध की शक्ति से हमारा बेटा आज आईआईटी रुड़की में पढ़ने लगा है और बेटी डॉक्टर बनने का स्वप्न पूरा करने का प्रयास कर रही है l हमें दूध की तासीर पर पूरा भरोसा है और इसी भरोसे हम निश्चिंत हैं कि हमारी बेटी डॉक्टर बन जाएगी l हमारे दूरदराज से रिश्तेदार, जान पहचान वाले भी इस दूध की दिल से प्रशंसा करते हैं l हम जब भी बाहर चाय पीते हैं या दूध, बस सगीर जी का स्मरण हो आता है l 
                सगीर मियां की भैंसें बड़ी हृष्ट पुष्ट और स्वस्थ रहती हैं l सुबह दूध वितरण के उपरान्त सगीर इन भैंसों को गंगा के कछार में भेज देते हैं l सारा दिन कछार में भ्रमण करके शाम को सभी भैंसें वापस आ जाती हैं l 
                सगीर मियां अपने पूरे परिवार में सबसे ज्यादा ख्याल अपनी भैंसों का रखते हैं l पहले भैंसें फिर परिवार l खुद भले न खांए किन्तु भैंसों का दाना पानी अवश्य करेंगें l बीमार रहें तो भी भैंसों की सेवा टहल स्वयं ही करते हैं l सगीर जी का भैंसों के प्रति समर्पण और उन भैंसों का दूध..................... बस सलाम l
               हमारा बेडरूम व सगीर जी की भैंसों का बाड़ा मात्र एक दीवार से अलग है l नौ इंची की दोनों तरफ से प्लास्टर की हुई दीवार l  
               सगीर मियां की दस भैंसों में से दो या तीन भैंसों को सदैव सींग में कुछ समस्या रहती है l कीड़े पड़े रहते हैं l ये कीड़े उन भैंसों को बहुत कष्ट देते हैं और देते आ रहे हैं l यह कष्ट पिछले पच्चीस वर्षों से निरंतर (भैंस बदल बदल के) जारी है l 
               कीड़े भैंसों की सींग में काटते रहते हैं और भैंसें उन कीड़ों को हटाने के प्रयास करने में अपनी सींग हमारी उसी दीवार पर निरंतर, अनवरत सारी सारी रात पटकती रहती हैं, संभवत: उन्हें इससे कुछ राहत भी मिलती होगी l
                हमारा क्या है, हम तो सहृदय पड़ोसी हैं l हमारे बेडरूम की एक दीवार पर भैंसें सारी सारी रात तबला बजाती रहती हैं, जुगलबंदी करती रहती हैं और हम अपने परिवार सहित बड़े आराम से पूरी रात नींद से लड़ते रहते हैं l पच्चीस वर्ष l
                 हमने कई बार सगीर मियां से अपनी नींद के बारे में बताया l हमारी मां ने, पिता ने, पत्नी ने, बच्चों ने सगीर मियां से, उनकी पत्नी से, उनके दोनों बच्चों से हजार बार से कहीं ज्यादा बार अनुनय विनय की होगी l 
                 किन्तु सगीर मियां को अपनी भैंसों के विरुद्ध कुछ भी नही सुनना होता है l नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं........ बिल्कुल नहीं l भैंसों के इलाज के लिए हमारी पेशकश, नई भैंसों की हमारी पेशकश भी उनको नही भाती l सामाजिक दबाव बनाने का प्रयास भी असफल l 
                सामाजिक दबाव निर्माण में कुछ आवाजें तो यह भी कह रहीं थीं कि इतने दिनों में तो आप लोगों को ही आदत पड़ जानी चाहिए l आप सब नाटक करते हो, आपकी सगीर से कोई व्यक्तिगत रंजिश है, वगैरह, वगैरह l 
               हमने भी फिर सन 2000 में अपनी व अपने परिवार की नींद की खातिर इलाहाबाद छोड़ दिया l सरकारी नौकरी है, सवा चार साल बाद फिर वापस इलाहाबाद आ गये l 
               फिर वही ठक,ठक,ठक,ठक,ठक.....
कोई रास्ता नही समझ में आया l पुलिस में रिपोर्ट करने की बात को 'पड़ोसी धर्म' के आगे समर्पण करवा लिया हमने l हमने भैंसों के कष्ट का वर्णन करते हुए मेनका गांधी जी को भी दो बार पत्र लिखा,
कोई उत्तर नही मिला l
               हमने मानवाधिकार आयोग को भी चिट्ठी लिखी, हमें सोने का अधिकार दिलाया जाय l मानवाधिकार आयोग ने भी विवशता जतला दी l नियम कानून का हवाला देने लगे l 
               समय धीरे धीरे बीतते बीतते सन 2010 आ गया l फरवरी 2010 में मेरा स्वास्थ्य खराब हो गया l इलाहाबाद में चिकित्सकों ने मेरे निरंतर खराब होते स्वास्थ्य को निरंतर खराब बनाए रखने में कोई कोर कसर नही उठा रखी l दिल्ली, मुम्बई में धक्के खाते खाते 2013 जून तक मेरा स्वास्थ्य ठीक होने लगा l 
               अस्वस्थता के लगभग तीन वर्ष l नित्य प्रति 22-25 एलोपैथिक दवाएं खाते खाते, निरंतर उपचार के उपरांत भी स्वास्थ्य का निरंतर खराब होते जाने की प्रक्रिया ने मुझे एकदम चिड़चिड़ा बना दिया l बाकी भैंस और उनका रात्रीकालीन संगीत ने रही सही कसर पूरी कर दी l
               अपनी अस्वस्थता का भी बीसों बार सगीर जी को हवाला दिया, किन्तु भैंस प्रेम के आगे पड़ोसी का अनुनय विनय कहां महत्व रखता है l हमारे अस्तित्व का संकट उपस्थित हो रहा था l हमारा पूरा परिवार हमारी अस्वस्थता व भैंस प्रकोप के कारण टूटने लगा था l कब सब कुछ एकदम बैठ जाएगा, कब सांसें थम जाएंगी...........ऐसी स्थिति हो गई थी l
               अन्ततोगत्वा, हमें अपने पड़ोसी धर्म को पुनर्परिभाषित करना पड़ा l 
"पड़ोसी एक दूसरे के सुख दुख में काम आते हैं l" को बदल दिया, कुछ यूं कि - 
"पड़ोसी को हमारा दुख भी बांटना ही होगा l"
               अब रात में किसी भी समय, जब भी, माने जब भी, भैंस की सींग की ठक ठक से हमारी नींद खुले, हम पड़ोसी के घर पंहुच जांए, दरवाजा कुछ इतनी जोर से खटखटाएं कि कम से कम चार पड़ोसी और जाग जांए l 
                सगीर मियां का पूरा परिवार गहरी नींद से उठता, हमसे अपनी विवशता कहता, कुछ देर बात होती, फिर वही ढाक के तीन पात l
                किन्तु, हमारी उनकी रात्रीकालीन बैठक होने लगी l बातचीत होती रहती थी l दो दो घंटे बैठक चलती l 
               अब दो परिवार सारी सारी रात जागते l हम दोनों पड़ोसी भैंस दुख के सताए, किसे अपना दुखड़ा सुनाएं l
                स्वास्थ्य लाभ प्रारम्भ होने के साथ नौकरी करने भी जाना पड़ता था l रात भर भैंस से जुगलबंदी, फिर पन्द्रह किमी की स्वड्राइविंग, दिन भरब कार्यालय में तनाव वाले कार्य, फिर पन्द्रह किमी ड्राइविंग और फिर रात भर ठकठकठकठकठक........l 
                एक रात सहिष्णुता का बांध टूट गया, मर्यादाओं की सीमा टूट गई, मुहल्ले का हर परिवार उस रात जग गया l हमने उस रात पहली बार पथराव किया, जमकर किया, जी भर कर किया l हर भैंस को बिना किसी भेद भाव के, दस दस पत्थर मारे, भैंसें दर्द से कराह उठीं, चिल्ला रहीं थीं l भैंसों की दर्द भरी चीत्कार सुन कर पूरे मुहल्ले के लोगों की आंखों से अांसू निकल पड़े l 
                भैंसों के इन मार्मिक रुदन ने सगीर मियां को विचलित कर दिया, अब सगीर मियां आंए बांए बकने लगे थे l ....................................... और मुझे उस तोते का पता मिल गया था जिसमें सगीर मियां की जान बसती थी l 
                 हमने पूरे मुहल्ले को साक्षी बनाकर घोषणा कर दी कि अब जब भी हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की नींद, भैंस की सींग की ध्वनि से पल भर के लिए भी टूटेगी, तब उस समय सभी को पुन: इसी प्रकार भैंस रुदन सुनाई पड़ेगा l  यह हमारा वचन है l
                अगली सुबह सरकारी पशु चिकित्सालय से डॉक्टर आए, सारी भैंसों का इलाज प्रारम्भ हो गया l  बावजूद इसके सगीर मियां इन विशेष भैंसों को हमारे बीच की दीवार से दूर बांधने लगे, जगह कम पड़ने की स्थिति में ये विशेष भैंसें बाहर सड़क पर रात बिताने लगीं l
                 धीरे धीरे दो वर्ष होने को आए, हम सपरिवार सामान्य नींद ले रहे हैं l
                 आज भी सगीर मियां हमें उतने ही प्यार से स्वादिष्ट व शुद्ध दूध पिलाते हैं l 
अब दूध में मिठास भी ज्यादा है l
हमने अपना परिवार, अपना घर बचा लिया,
हमें अपने मुल्क का नक्शा बरकरार रखना आ गया है, मियां हाशिम अंसारी l 
..............मोहन भागवत, हम तुम्हें भी देख लेंगें l