सोमवार, 28 दिसंबर 2015

सिलाई मशीन का दर्द

                  ....................सिलाई मशीन का दर्द................

कल दिनभर की भारी भागदौड़ के बाद हम रात्रीकालीन भोजन करके लगभग दस बजे ही गहरी नींद सो गये l
कोई चार घंटे की नींद के पश्चात कुछ अनियमित सी खड़र खड़र की ध्वनि सुनाई पड़ने से नींद टूट गई l
कुछ देर प्रतीक्षा करने के पश्चात भी ध्वनि बंद नही होने से हम उठे, अपनी लाठी उठाई और ध्वनि की दिशा जो कि रसोईघर की ओर से आ रही थी l
हम वहां पंहुचे, अपने राजमहल के उस क्षेत्र को 'ज्योतिर्मय' किया, देखा वहां कोई नही था l
हम वापस लौटने लगे कि कहीं से फिर 'खड़'
की ध्वनि सुनाई पड़ती है, जैसे किसी ने गला बैठा कर या मुंह से हाथ दबा कर 'खड़' की ध्वनि की हो l
अब हमें विश्वास हो गया कि यह मेरा स्वप्न नही था, निश्चित रूप से कोई तो है यहां पर l
........कौन है यहां ?
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........हम अंतिम बार कह रहे हैं, जो भी है स्वयं सामने आओ, यदि हमें निकालना पड़ा तो इस सिलाई मशीन से तुम्हारे दोनो होठ सिल दूंगा l
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अच्छा तो हम अब लाठी उठाते हैं, और जैसे ही लाठी उठाई.....
...खड़ अरे खड़ संतोष, यह हम खड़ हैं l
...कौन ? सामने आओ l
...हम, खड़, सिलाई मशीन खड़ हैं l
मेरे हाथ से लाठी छूट गई, दोनों पैर थर थर कांप रहे थे, 20-21 दिसम्बर की रात में पसीने की बूंदे ललाटोत्सव करने लगीं l
...अरे संतोष, हम खड़, सिलाई मशीन हैं, डरो मत l हमारे खड़ उपर हमने तुम्हारे खड़ लिए एक ग्लास पानी खड़ रखा है, पी लो फिर सो जाओ खड़ l
हमने देखा, सिलाई मशीन पर पानी था l
.....ये तो बहुत ठंढा पानी है l
................................... अब पी लो l
पानी कुनकना हो गया l हम पानी पी गये l
(पानी मेरे सामने पलक झपकते ही कुनकना हो गया था, डर गए हम l मशीन की सत्यता परखने हेतु हमने साहस बटोरते हुए -
...मुझे तुम्हारी खड़ खड़ से बहुत कष्ट हो रहा है, इसे पहले बंद करो l
...खड़....... ठीक है, अब खड़ खड़ नही होगा, किन्तु तुम से बात करने के लिए मुझे नॉन खड़क स्थिति में आना होगा l डरना मत तुम l
और देखते ही देखते वह मशीन महिला रूप में आई और सामने की कुर्सी पर बैठ गई l
... हे देवी आप कौन हैं ?
... मैं सिलाई मशीन ही हूं l
... मुझे विश्वास नही हो रहा है, डर भी लग रहा है l
... डरने की कतई आवश्यकता नही है l
... अच्छा ठीक, तो फिर आप रात में अचानक से क्यों खड़खड़ाने लगीं थीं ?
... हम खड़खड़ा नही रहे थे, हम अपनी सामाजिक स्थिति पर बहुत दुखी थे, बस इस समय भावातिरेक में हमारी आंखो से अश्रु निकल पड़े l
... तुम्हारी सामाजिक स्थिति ? तुम्हारे अश्रु ? क्या है, समझ नही आ रहा है l तुम्हारे पास जीवन भी है?
... हां संतोष l लगभग दो सौ साठ वर्षों से हम इस संसार में निरंतर, तुम्हारी सामर्थ्य भर तुम्हारी ही सेवा कर रहे हैं l तुम लोगों ने आज हमारे साथ क्या कर दिया ?
...दो सौ साठ वर्ष ?
... हां, सन 1755 से 19 वीं शताब्दी के अंत तक विकसित होते हुए हम भारत में आए थे, अमेरिका से सिंगर व ब्रिटेन से पफ के रूप में l सन 1935 से हम कोलकाता में ही बनने लगे और हमें उषा नाम से जाना जाने लगा l अब तो तुम्हारी आवश्यकता के अनुसार हमारे लगभग 2000 प्रकार, तुम्हारे लिए कपड़ा/चमड़ा की सिलाई, कढ़ाई, काज जैसे सभी कार्य कर रहें हैं l
इतने वर्षों में आज तक हमें किसी ने भी -
इतना शर्मिन्दा नही किया,
हमारे आत्मसम्मान/प्रतिष्ठा को इतनी ठेस नही पहुंचाई,
हमें हमारी ही आंखों से इतना नही गिराया
जितना दिल्ली सरकार नें हमें मोहम्मद अफरोज के हाथों में सौंपने की घोषणा करके किया है l
एक समय था कि हम सामाजिक प्रतिष्ठा के प्रतीक हुआ करते थे, आज मुस्लिम बलात्कारीे पुनर्वास योजना के प्रतीक के रूप में स्थापित हैं l
हमारी पैतृक यशगाथा की महत्ता समाप्त हो गई l
हमारा कुल कलंकित हो गया l
तुम मनुष्यों के अपने विवाद में हमारा क्या योगदान है,
हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ?
तुम्हें तन ढकने लिए हमने सुसज्जित वस्त्र दिए, और तुमने हमें वस्त्रहीन कर दिया l आज पूरी दुनिया के सामने 'उषा' निर्वस्त्र हो गई l
हे कान्हा,
अपनी द्रौपदी की लाज रखो, मुझे बचाओ,
मेरी अस्मिता को इन कौरवों से बचा लो, प्रभु l
इतना कहते ही वो नारी-यंत्र में परिवर्तित हो गई l
अब चाहे जैसे चलाओ,
बालिग, नाबालिग सब चलाओ,
सभी नाबालिग, हर मशीन चलाओ,
पुनर्वास स्वरूप नई नई मशीन पाओ,
फिर फिर चलाओ l
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'नारी तुम केवल श्रृद्धा हो'
हम तुमसे क्षमा मांगने योग्य भी नही हैं l

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