शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

सगीर मियां की भैंसों का भारत

हमारे घर के बाईं ओर सगीर मियां का मकान है l सगीर मियां के घर में उनकी श्रीमती जी, एक बेटा, दस के लगभग भैंसें व एक गाय रहते हैं l  सगीर जी मुझसे कोई दस पन्द्रह वर्ष बड़े होंगें l सगीर जी के एक बिटिया भी है, नाम है गुड़िया l गुड़िया का निकाह हो चुका है, यहीं कोखराज के पास रहती है l
हम यहां इस मकान में सन 1988 में आए थे l सगीर भी तभी आए थे l हम अट्ठाइस वर्ष से पड़ोसी हैं l 
सगीर जी दूध का व्यवसाय करते हैं l सुबह शाम भैंसों व गाय का दूध दुहते हैं और सबको देते हैं l इतना बढ़िया दूध होता है कि उसकी प्रशंसा के लिए हमारे पास शब्द नही हैं l इसी दूध को पच्चीस वर्षों से हमारे परिवार में प्रयोग किया जाता है और इसी दूध की शक्ति से हमारा बेटा आज आईआईटी रुड़की में पढ़ने लगा है और बेटी डॉक्टर बनने का स्वप्न पूरा करने का प्रयास कर रही है l हमें दूध की तासीर पर पूरा भरोसा है और इसी भरोसे हम निश्चिंत हैं कि हमारी बेटी डॉक्टर बन जाएगी l हमारे दूरदराज से रिश्तेदार, जान पहचान वाले भी इस दूध की दिल से प्रशंसा करते हैं l हम जब भी बाहर चाय पीते हैं या दूध, बस सगीर जी का स्मरण हो आता है l 
                सगीर मियां की भैंसें बड़ी हृष्ट पुष्ट और स्वस्थ रहती हैं l सुबह दूध वितरण के उपरान्त सगीर इन भैंसों को गंगा के कछार में भेज देते हैं l सारा दिन कछार में भ्रमण करके शाम को सभी भैंसें वापस आ जाती हैं l 
                सगीर मियां अपने पूरे परिवार में सबसे ज्यादा ख्याल अपनी भैंसों का रखते हैं l पहले भैंसें फिर परिवार l खुद भले न खांए किन्तु भैंसों का दाना पानी अवश्य करेंगें l बीमार रहें तो भी भैंसों की सेवा टहल स्वयं ही करते हैं l सगीर जी का भैंसों के प्रति समर्पण और उन भैंसों का दूध..................... बस सलाम l
               हमारा बेडरूम व सगीर जी की भैंसों का बाड़ा मात्र एक दीवार से अलग है l नौ इंची की दोनों तरफ से प्लास्टर की हुई दीवार l  
               सगीर मियां की दस भैंसों में से दो या तीन भैंसों को सदैव सींग में कुछ समस्या रहती है l कीड़े पड़े रहते हैं l ये कीड़े उन भैंसों को बहुत कष्ट देते हैं और देते आ रहे हैं l यह कष्ट पिछले पच्चीस वर्षों से निरंतर (भैंस बदल बदल के) जारी है l 
               कीड़े भैंसों की सींग में काटते रहते हैं और भैंसें उन कीड़ों को हटाने के प्रयास करने में अपनी सींग हमारी उसी दीवार पर निरंतर, अनवरत सारी सारी रात पटकती रहती हैं, संभवत: उन्हें इससे कुछ राहत भी मिलती होगी l
                हमारा क्या है, हम तो सहृदय पड़ोसी हैं l हमारे बेडरूम की एक दीवार पर भैंसें सारी सारी रात तबला बजाती रहती हैं, जुगलबंदी करती रहती हैं और हम अपने परिवार सहित बड़े आराम से पूरी रात नींद से लड़ते रहते हैं l पच्चीस वर्ष l
                 हमने कई बार सगीर मियां से अपनी नींद के बारे में बताया l हमारी मां ने, पिता ने, पत्नी ने, बच्चों ने सगीर मियां से, उनकी पत्नी से, उनके दोनों बच्चों से हजार बार से कहीं ज्यादा बार अनुनय विनय की होगी l 
                 किन्तु सगीर मियां को अपनी भैंसों के विरुद्ध कुछ भी नही सुनना होता है l नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं........ बिल्कुल नहीं l भैंसों के इलाज के लिए हमारी पेशकश, नई भैंसों की हमारी पेशकश भी उनको नही भाती l सामाजिक दबाव बनाने का प्रयास भी असफल l 
                सामाजिक दबाव निर्माण में कुछ आवाजें तो यह भी कह रहीं थीं कि इतने दिनों में तो आप लोगों को ही आदत पड़ जानी चाहिए l आप सब नाटक करते हो, आपकी सगीर से कोई व्यक्तिगत रंजिश है, वगैरह, वगैरह l 
               हमने भी फिर सन 2000 में अपनी व अपने परिवार की नींद की खातिर इलाहाबाद छोड़ दिया l सरकारी नौकरी है, सवा चार साल बाद फिर वापस इलाहाबाद आ गये l 
               फिर वही ठक,ठक,ठक,ठक,ठक.....
कोई रास्ता नही समझ में आया l पुलिस में रिपोर्ट करने की बात को 'पड़ोसी धर्म' के आगे समर्पण करवा लिया हमने l हमने भैंसों के कष्ट का वर्णन करते हुए मेनका गांधी जी को भी दो बार पत्र लिखा,
कोई उत्तर नही मिला l
               हमने मानवाधिकार आयोग को भी चिट्ठी लिखी, हमें सोने का अधिकार दिलाया जाय l मानवाधिकार आयोग ने भी विवशता जतला दी l नियम कानून का हवाला देने लगे l 
               समय धीरे धीरे बीतते बीतते सन 2010 आ गया l फरवरी 2010 में मेरा स्वास्थ्य खराब हो गया l इलाहाबाद में चिकित्सकों ने मेरे निरंतर खराब होते स्वास्थ्य को निरंतर खराब बनाए रखने में कोई कोर कसर नही उठा रखी l दिल्ली, मुम्बई में धक्के खाते खाते 2013 जून तक मेरा स्वास्थ्य ठीक होने लगा l 
               अस्वस्थता के लगभग तीन वर्ष l नित्य प्रति 22-25 एलोपैथिक दवाएं खाते खाते, निरंतर उपचार के उपरांत भी स्वास्थ्य का निरंतर खराब होते जाने की प्रक्रिया ने मुझे एकदम चिड़चिड़ा बना दिया l बाकी भैंस और उनका रात्रीकालीन संगीत ने रही सही कसर पूरी कर दी l
               अपनी अस्वस्थता का भी बीसों बार सगीर जी को हवाला दिया, किन्तु भैंस प्रेम के आगे पड़ोसी का अनुनय विनय कहां महत्व रखता है l हमारे अस्तित्व का संकट उपस्थित हो रहा था l हमारा पूरा परिवार हमारी अस्वस्थता व भैंस प्रकोप के कारण टूटने लगा था l कब सब कुछ एकदम बैठ जाएगा, कब सांसें थम जाएंगी...........ऐसी स्थिति हो गई थी l
               अन्ततोगत्वा, हमें अपने पड़ोसी धर्म को पुनर्परिभाषित करना पड़ा l 
"पड़ोसी एक दूसरे के सुख दुख में काम आते हैं l" को बदल दिया, कुछ यूं कि - 
"पड़ोसी को हमारा दुख भी बांटना ही होगा l"
               अब रात में किसी भी समय, जब भी, माने जब भी, भैंस की सींग की ठक ठक से हमारी नींद खुले, हम पड़ोसी के घर पंहुच जांए, दरवाजा कुछ इतनी जोर से खटखटाएं कि कम से कम चार पड़ोसी और जाग जांए l 
                सगीर मियां का पूरा परिवार गहरी नींद से उठता, हमसे अपनी विवशता कहता, कुछ देर बात होती, फिर वही ढाक के तीन पात l
                किन्तु, हमारी उनकी रात्रीकालीन बैठक होने लगी l बातचीत होती रहती थी l दो दो घंटे बैठक चलती l 
               अब दो परिवार सारी सारी रात जागते l हम दोनों पड़ोसी भैंस दुख के सताए, किसे अपना दुखड़ा सुनाएं l
                स्वास्थ्य लाभ प्रारम्भ होने के साथ नौकरी करने भी जाना पड़ता था l रात भर भैंस से जुगलबंदी, फिर पन्द्रह किमी की स्वड्राइविंग, दिन भरब कार्यालय में तनाव वाले कार्य, फिर पन्द्रह किमी ड्राइविंग और फिर रात भर ठकठकठकठकठक........l 
                एक रात सहिष्णुता का बांध टूट गया, मर्यादाओं की सीमा टूट गई, मुहल्ले का हर परिवार उस रात जग गया l हमने उस रात पहली बार पथराव किया, जमकर किया, जी भर कर किया l हर भैंस को बिना किसी भेद भाव के, दस दस पत्थर मारे, भैंसें दर्द से कराह उठीं, चिल्ला रहीं थीं l भैंसों की दर्द भरी चीत्कार सुन कर पूरे मुहल्ले के लोगों की आंखों से अांसू निकल पड़े l 
                भैंसों के इन मार्मिक रुदन ने सगीर मियां को विचलित कर दिया, अब सगीर मियां आंए बांए बकने लगे थे l ....................................... और मुझे उस तोते का पता मिल गया था जिसमें सगीर मियां की जान बसती थी l 
                 हमने पूरे मुहल्ले को साक्षी बनाकर घोषणा कर दी कि अब जब भी हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की नींद, भैंस की सींग की ध्वनि से पल भर के लिए भी टूटेगी, तब उस समय सभी को पुन: इसी प्रकार भैंस रुदन सुनाई पड़ेगा l  यह हमारा वचन है l
                अगली सुबह सरकारी पशु चिकित्सालय से डॉक्टर आए, सारी भैंसों का इलाज प्रारम्भ हो गया l  बावजूद इसके सगीर मियां इन विशेष भैंसों को हमारे बीच की दीवार से दूर बांधने लगे, जगह कम पड़ने की स्थिति में ये विशेष भैंसें बाहर सड़क पर रात बिताने लगीं l
                 धीरे धीरे दो वर्ष होने को आए, हम सपरिवार सामान्य नींद ले रहे हैं l
                 आज भी सगीर मियां हमें उतने ही प्यार से स्वादिष्ट व शुद्ध दूध पिलाते हैं l 
अब दूध में मिठास भी ज्यादा है l
हमने अपना परिवार, अपना घर बचा लिया,
हमें अपने मुल्क का नक्शा बरकरार रखना आ गया है, मियां हाशिम अंसारी l 
..............मोहन भागवत, हम तुम्हें भी देख लेंगें l 

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